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विश्वभाषा संस्कृतम्

संस्कृत विश्व की सबसे पुरानी भाषा है। इसके समय की लगभग सभी भाषाओं और संस्कृतियों का अंत हो गया है। लेकिन संस्कृत की अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण ही इसका अंत नही हुआ। हाँ , ये सच है कि संस्कृत वर्तमान समय में कमजोर अवश्य हो गयी है पर इसका अंत नही हुआ और न ही कभी होगा, क्योंकि अब पाश्चात्य विद्वान भी इसकी महत्ता स्वीकार करने लगे हैं। ये बात भी सिद्ध हो चुकी है कि कंप्यूटर के लिए सबसे उपर्युक्त भाषा संस्कृत ही है। ये बात दावे के साथ कही जा सकती है कि आने वाला समय संस्कृत का ही होगा। आइये संस्कृत के बारे में कुछ तथ्य जानें_____ 1. संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी माना जाता है।2. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा है। 3. अरब लोगो की दखलंदाजी से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रीय भाषा थी। 4. NASA के मुताबिक संस्कृत धरती पर बोली जाने वाली सबसे स्पष्ट भाषा है। 5. संस्कृत में दुनिया की किसी भी भाषा से ज्यादा शब्द है। वर्तमान में संस्कृत के शब्दकोष में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द है। 6. संस्कृत किसी भी विषय के लिए एक अद्भुत खजाना है। जैसे हाथी के लिए ही संस्कृत में 100 से ज्यादा शब्द है। 7. NAS

हिंदुत्व और साम्प्रदायिकता

हिंदुत्व और साम्प्रदायिकता  आज के राजनीति में हिंदुत्व को गाली देकर अपने आपको धर्मनिरपेक्ष कहना एक परंपरा हो गयी है। पहली बात तो ये की वे न तो हिंदुत्व का अर्थ समझते हैं और न ही धर्मनिरपेक्षता को। जिस कारण भारत के अधिकांश व्यक्ति हिंदुत्व को गलत अर्थ में लेते हैं , उनके अनुसार हिन्दू शब्द ही साम्प्रदायिक है। यदि आज के अनभिज्ञ भारतीय यह समझ लें कि हिंदुत्व और साम्प्रदायिकता में उतना ही अंतर है जितना कि आकाश और पाताल में तो वे अपनी मानसिक दासता की सबसे मजबूत श्रृंखला को अवश्य तोड़ने में समर्थ हो जाएंगे। हिन्दू शब्द की परिभाषा भिन्न भिन्न प्रकार से दी गई है पर सबसे विशद, प्रामाणिक और सरल परिभाषा अखिल भारतीय हिन्दू महासभा की ओर से निम्न प्रकार से दी गई है____ आसिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः । पितृभूः  पुण्यभूश्चैव  स  वै  हिन्दुरिति  स्मृत: ॥ >>अर्थात जो सिंधु नदी से लेकर सागर(कन्याकुमारी) तक इस भारत भूमि को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है वह हिन्दू है। कितनी असाम्प्रदायिक परिभाषा है यह। साम्प्रदायिकता का इसमे तो नामो निशान तक नही है।यह परिभाषा किसी भी सम्प्रदाय

श्री शिव पञ्चाक्षरस्त्रोतम्

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https://youtu.be/DVwd-Id7ck4 नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे “न” काराय नमः शिवायः॥ मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे “म” काराय नमः शिवायः॥ शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥ वषिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवायः॥ यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै “य” काराय नमः शिवायः॥ पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ ॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥            हिन्दी अर्थ__________ जिनके कंठ में साँपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अनुलेपन है, उन अविनाशी महेश्वर 'न' कारस्वरूप शिव को नमस्कार है।। 1 ।। गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चा हुई है, मन्दरपुष्प तथा अन्यान्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है,

व्यवहारिक जीवन मे प्रयोग होने वाले कुछ शब्दो का संस्कृत

अत्र - यहाँ तत्र - वहाँ कुत्र - कहाँ यत्र - जहाँ इतः - यहां से ततः - वहां से कुतः - कहाँ से यतः - जहां से अद्य - आज अद्यत्वे - आजकल श्वः - आने वाला कल पर श्वः - आने व‍ाला परसो ह्यः - बिता हुआ कल पर ह्यः - बिता हुआ परसो उपरि - उपर नीचैः - नीचे आगम्यताम्  - आइये गम्यताम् - जाइये दृश्यताम् - देखिये पठ्यताम् - पढ़िये लिख्यताम् - लिखिये चल्यताम् - चलिये दीयताम् - दीजिये गृह्यताम् - लीजिये क्रीयताम् - कीजिये पिधियताम् - बन्द कीजिये उद्घाटयताम् - खोलिये नियताम् ले - जाइये आनियताम् - ले आइये अपस्रियताम् - हटिये उच्यताम् - बोलिये त्यज्यताम् - छोड़िये शय्यताम् - सोइये जाग्रीयताम् - जागीये खाद्यताम्/भक्ष्यत‍ाम् - खाइये पीयताम् - पीजिये उपविश्यताम् - बैठिये तुष्णीम् स्थियताम् - चुपचाप रहिये प्रोक्ष्यताम् - पोछिये धार्यताम् - पहनिये छिप्यताम् - फेंकिये नृत्यताम् - नाचिये प्रक्षाल्यताम् - धोइये समाप्यताम् - समाप्त कीजिये धीयताम् - गाइये सम्मार्जताम् - साफ कीजिये आहुय्यताम् - बुलाइये अवनीयताम् - झुकिये

Shiv tandav stotram शिव तांडव स्तोत्रं

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले,गलेऽवलम्ब्य लम्बितांभुजङ्गतुङ्गमालिकाम् | डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं,चकारचण्डताण्डवंतनोतु नःशिवःशिवम् ||१|| जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि | धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२|| धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे | कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३|| जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे | मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४|| सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः | भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५|| ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् | सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६|| कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके | धरा